संवाददाता सऊद
लखनऊ। दिव्यांगता को समाज में आज भी एक कलंक के तौर पर देखा जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में दिव्यांगों की आबादी कहीं न कहीं चिंता का विषय है। हालांकि, शारीरिक दिव्यांगता के खिलाफ जंग का बिगुल जरूर फूंका गया है जिसमें काफी हद तक भारत की स्थिति सुधरी है लेकिन मानसिक दिव्यांगता आकंड़ों को देखने के बाद चिंता और बढ़ जाती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई चेतावनी के अनुसार, दुनिया भर में, सात में से कम से कम एक किशोर-किशोरियां मानसिक विकार के शिकार हैं। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के मामले पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ते हुए देखे गए हैं, विशेषतौर पर कोरोना महामारी के बाद से इसकी दर में और भी बढ़ोतरी आई है।
‘द होप रिहैबिलिटेशन एंड लर्निंग सेंटर के प्रबंध निदेशक दिव्यांशु कुमार ने बताया हमारा उद्देश्य यही हैं कि नई पीढ़ी को मानसिक दिव्यांगता और मानसिक विकारों से निजात दिला सकें। हमने यह भी नोटिस किया है कि मानसिक विकारों से जूझ रहे बच्चों को नार्मल स्कूल में एडमिशन मिलने में काफी दिक्कतें होती है। बच्चों का एकेडमिक भी सुचारू रूप से चलता रहे, इसके लिए हमनें स्कूल रेडिनेंस प्रोग्राम भी चलाया है. द होप ग्लोबल प्ले स्कूल इसका एक जीता-जागता उदाहरण है।
मनोचिकित्सक डॉ. पारुल प्रसाद कहती हैं, इन दिनों चिंताजनक ये है कि सात से आठ साल के बच्चे मानसिक तनाव की समस्या लेकर हमारे पास आ रहे हैं। चैलेंज ये रहता है कि बच्चो को मेडिसिन की बजाय थेरेपी से ठीक किया जाये. हालांकि, जहां जरूरत पड़ती है वहां मेडिकेशन का आप्शन भी इस्तेमाल किया जाता है। लाइफस्टाइल मॉडिफिकेशन, डाईट और थेरेपी के माध्यम से बच्चों को उनकी समस्याओं से निजात दिलाने की भरपूर कोशिश की जाती है। हमारे सामने ये चैलेंज रहता है कि बच्चों को मेनस्ट्रीम में शामिल कराया जाए। हमारा लक्ष्य है कि जैसे हम शारीरिक दिव्यांगता के खिलाफ जारी जंग में जीत स्थापित कर रहे हैं ठीक वैसे ही मानसिक दिव्यांगता से भी देश को जीत दिलाये। इसके लिए हम सीआरसी की टीम से जुड़े हुए हैं। जो भी बच्चे किसी भी प्रकार की मानसिक दिव्यांगता से जूझ रहे हैं, वे थेरेपी के माध्यम से ठीक किए जाते हैं। इसी माह हम एक सेंटर की भी शुरुआत करने जा रहे हैं जिसमें न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर से जूझ रहे बच्चों का इलाज किया जाएगा।
पीडियाट्रिशियन डॉ. तरुण आनंद बताते हैं कि अगर अभिभावकों को सही समय पर सही जानकारी मुहैया करा दी जाए तो काफी हद तक बच्चों में मानसिक विकारों को सही किया जा सकता है। उन्होंने बताया,‘टीकाकरण के दौरान या फिर रूटीन चेक-अप के दौरान जब भी मां-बाप बच्चे को हमारे पास लेकर आते हैं, उस वक्त हम डेवलपमेंटल माइलस्टोंस को चेक करते हैं। आसान भाषा में समझाएं तो, बच्चे की मसल पॉवर, उसका बोलना, चलना, उसकी फिजिकल एक्टिविटीज को परखा जाता है।