लखनऊ। “मैं तेजपुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश।
जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास।।”
विश्व बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत ये पंक्तियां भारतीय राजनीति के शलाका पुरुष, अजातशत्रु, कवि हृदय ‘जननायक’ अटल बिहारी वाजपेई जी की हैं।
अटल जी भारतीय सनातन परम्परा में अनन्य उपासक एवं भारतीय मूल्यों के संरक्षक रहे हैं। वे स्वयं राजनीति को काजल की कोठरी कहते रहे, किन्तु इस काजल की कोठरी से निष्कलंक बाहर आ पाना उनके ही बूते की बात थी।
आज जब राजनीति में भाषाई एवं लोकतांत्रिक मर्यादाएं तार-तार होती हैं, ऐसे में अटल जी और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। वे विपक्ष में रहते हुए भी सत्ता पक्ष के सकारात्मक कदमों की प्रशंसा से नहीं चूकते, राजनैतिक लाभ से इतर उनमें राष्ट्र प्रथम की भावना सदैव सर्वोपरि रही। वे मतभेद को खुले हृदय से स्वीकारते हैं, किन्तु मनभेद से मीलों दूर रहते हैं।
वे समष्टि (समाज) के लिए व्यष्टि (निज) को न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं।
अटल जी भारतीय चेतना प्रखर स्तम्भ हैं, वे राष्ट्र हित में पहल करना भी जानते हैं और राष्ट्र के स्वाभिमान से समझौता करना भी उन्हें कदापि स्वीकार नहीं है।
वे हास परिहास को पूर्ण स्थान देते हैं, किन्तु किसी के भी उपहास को कभी स्थान नहीं देते।
राजनीतिज्ञों को शब्द चयन अटल जी से सीखना चाहिए, वे आलोचना करते समय भी संयमित शब्दों का प्रयोग करते हैं।
उन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए।
भारत जोड़ो योजना
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सड़कों के माध्यम से देश को जोड़ने की योजना बनाई। इसके अंतर्गत उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना प्रारंभ की। इसके साथ-साथ उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना प्रारंभ की। इन योजनाओं के कारण विकास कार्यों की गति तीव्र हुई। इससे आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहन मिला। इन योजनाओं को बहुत सराहा गया।
इसके अतिरिक्त उन्होंने नदियों को जोड़ने की योजना पर भी विचार-विमर्श किया। उन्होंने वर्ष 2003 में एक टास्क फोर्स गठित किया, परंतु भारी विरोध के कारण इस संबंध में कार्य प्रारंभ नहीं हो सका।
संचार क्रांति को प्रोत्साहन
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने देश में संचार क्रांति को बढ़ावा दिया। उनकी सरकार ने वर्ष 1999 में भारत संचार निगम लिमिटेड के एकाधिकार को समाप्त कर दिया तथा नई टेलिकॉम नीति लागू की। इसके कारण उपभोक्ताओं को सस्ती दर पर मोबाइल सेवा उपलब्ध हो सकी।
सर्व शिक्षा अभियान
वाजपेयी सरकार ने शिक्षा को बढ़ावा दिया। उन्होंने वर्ष 2000-01 में छह से 14 वर्ष के बालकों को निशुल्क शिक्षा देने का अभियान प्रारंभ किया। इससे बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई। वर्ष 2000 में लगभग 40 प्रतिशत बच्चों ने बीच में पढ़ाई छोड़ी थी। वर्ष 2005 में केवल 10 प्रतिशत बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी। उन्होंने इस अभियान के ली गीत भी लिखा था।
विनिवेश का प्रारंभ
अटलजी के शासनकाल में देश में निजीकरण को प्रोत्साहन दिया गया। उन्होंने वर्ष 1999 में विनिवेश मंत्रालय के रूप में एक नए मंत्रालय का गठन किया। अरुण शौरी को इसका मंत्री बनाया गया। इस मंत्रालय ने भारत एल्यूमिनियम कंपनी, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान जिंक एवं विदेश संचार निगम लिमिटेड आदि सरकारी कंपनियों के विक्रय की प्रक्रिया प्रारंभ की। इसके साथ-साथ उन्होंने बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा को 26 प्रतिशत तक किया था। वर्ष 2015 में मोदी सरकार ने इसे बढ़ाकर 49 प्रतिशत कर दिया।
पोखरण का परीक्षण
अटल सरकार की बड़ी उपलब्धियों में पोखरण परीक्षण भी सम्मिलित है। मई 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। यद्यपि इस परीक्षण के पश्चात् अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा सहित अनेक पश्चिमी देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था। किंतु अटलजी अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटे। अंततः उनकी की विजय हुई और कुछ समय के पश्चात् इन देशों ने प्रतिबंध हटा लिए।
बस सेवा
अटलजी ने भारत एवं पाकिस्तान के आपसी संबंधों को सुधारने के दृष्टिगत फरवरी 1999 में दिल्ली-लाहौर बस सेवा प्रारंभ की थी। प्रथम बस सेवा से वे स्वयं लाहौर गए तथा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से भेंट की। उन्होंने एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए। इसे एक बड़ी उपलब्धि मना जाता है।
आतंकवाद निरोधक अधिनियम
अटल सरकार ने आतंकवाद निरोधक अधिनियम 2002 लागू किया था। यह अधिनियम देश में हो रही कई आतंकवादी घटनाओं विशेषकर संसद पर हमले के पश्चात् पारित किया गया था। यह अधिनियम, आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1987 के स्थान पर लागू किया गया था। केवल दो वर्ष की समयावधि में अटल सरकार ने 32 संगठनों पर पोटा के अंतर्गत प्रतिबंध लगाया था। देश के सुरक्षा की दृष्टि से इसे बहुत बड़ी उपलब्धि माना जाता है।
संविधान समीक्षा आयोग का गठन
अटल वाजपेयी सरकार ने संविधान में संशोधन की आवश्यकता पर विचार-विमर्श करने के लिए 1 फरवरी 2000 को संविधान समीक्षा के राष्ट्रीय आयोग गठित किया था। इसका बहुत विरोध किया गया।
इसके पश्चात् भी अटल सरकार ने आयोग का गठन किया तथा उसे छह माह का समय प्रदान किया गया।
जातिवार जनगणना पर रोक
वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के बनने से पूर्व एचडी देवगौड़ा सरकार ने जातिवार जनगणना को स्वीकृति दी थी। इसके कारण वर्ष 2001 में जातिगत जनगणना होनी थी। मंडल कमीशन के प्रावधानों को लागू करने के पश्चात् देश में प्रथम बार जनगणना 2001 में होनी थी। इसका उद्देश्य यह देखना था कि ऐसे मंडल कमीशन के प्रावधानों को सही तरीके से लागू किया जा रहा है अथवा नहीं। इसीलिए जातिगत जनगणना कराने जाने की मांग उठ रही थी। कोई ठोस कार्य प्रणाली बनाने के लिए न्यायिक प्रणाली द्वारा तथ्यात्मक आंकड़ों को एकत्रित करने की बात कही जा रही थी। तत्कालीन रजिस्टार जनरल ने भी जातिगत जनगणना को स्वीकृति दी थी, परंतु अटल सरकार ने इस निर्णय को परिवर्तित कर दिया। इसके कारण जातिवार जनगणना नहीं हो सकी।
अटलजी ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य किए, जिसके लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनकी सेवाओं के लिए 25 जनवरी 1992 को उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा 28 सितंबर 1992 को उन्हें ’हिंदी गौरव’ से सम्मानित किया गया। उन्हें 20 अप्रैल 1993 को कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया गया। उन्हें 1 अगस्त 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार 17 अगस्त 1994 को संसद द्वारा उन्हें श्रेष्ठ सासंद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके पश्चात् उन्हें 27 मार्च 2015 को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वह कहते थे इतिहास में हुई भूल के लिए आज किसी से बदला लेने का समय नहीं है, लेकिन उस भूल को ठीक करने का सवाल है। एटम बम का जवाब क्या है? एटम बम का जवाब एटम बम है और कोई जवाब नहीं। भारत की सुरक्षा की अवधारणा सैनिक शक्ति नहीं है. भारत अनुभव करता है सुरक्षा आंतरिक शक्ति से आती है। अगर हम देशभक्त न होते और अगर हम निःस्वार्थ भाव से राजनीति में अपना स्थान बनाने का प्रयास न करते और हमारे इन प्रयासों के साथ इतने साल की साधना न होती तो हम यहां तक न पहुंचते। सेना के उन जवानों का अभिनन्दन होना चाहिए, जिन्होंने अपने रक्त से विजय की गाथा लिखी। विजय का सर्वाधिक श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है, तो हमारे बहादुर जवानों को और उनके कुशल सेनापतियों को। अभी मुझे ऐसा सैनिक मिलना बाकी है, जिसकी पीठ में गोली का निशान हो. जितने भी गोली के निशान हैं, सब निशान सामने लगे हैं। अगर अपनी सेनाओं या रेजिमेंटों के नाम हमें रखने हैं, तो राजपूत रेजिमेंट के स्थान पर राणा प्रताप रेजिमेंट रखें, मराठा रेजिमेंट के स्थान पर शिवाजी रेजिमेंट और ताना रेजिमेंट रखे, सिख रेजिमेंट की जगह रणजीत सिंह रेजिमेंट रखें।
वह कहते थे कि किसी भी देश को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक साझदारी का हिस्सा होने का ढोंग नहीं करना चाहिए, जबकि वह आतंकवाद को बढ़ाने, उकसाने, और प्रायोजित करने में लगा हुआ हो। आज वैश्विक निर्भरता का अर्थ यह है कि विकासशील देशों में आई आर्थिक आपदाएं विकसित देशों में संकट ला सकती हैं। राज्य को, व्यक्तिगत सम्पत्ति को जब चाहे तब जब्त कर लेने का अधिकार देना एक खतरनाक चीज होगी। संयुक्त राष्ट्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि वह समरत मानवता का सबल स्वर बन सके और देशों के बीच एक-दूसरे पर अवलम्बित सामूहिक सहयोग का गतिशील माध्यम बन सके। कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि देश मूल्यों के संकट में फंसा है।
लेखक – भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता है