लखनऊ। दुनियाभर की निगाहें भारत के चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग पर टिकी हुईं थी। ज़ब सफलता पूर्वक चंद्रयान 3 का रोवर चंदा मामा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा। यह अपने आप में दुनिया का पहला सफल मिशन है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के इस अभियान में देश भर के वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है साथ ही तमिलनाडु का योगदान भी अहम है। ISRO को इस मुकाम तक पहुंचाने में तमिलनाडु के बेटों- पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, चंद्रयान-2 के मिशन निदेशक मायिलसामी अन्नादुरई, चंद्रयान-3 के परियोजना निदेशक वीरमुथेवल पी के योगदान के साथ-साथ राज्य की मिट्टी का भी बड़ा योगदान है।
तमिलनाडु की मिट्टी से इसरो को अपने लैंडर मॉड्यूल की क्षमताओं की जांच करने और इसमें सुधार करने में बड़ी मदद मिली है। अगर चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा में सॉफ्ट लैंडिंग के अपने लक्ष्य को हासिल कर लेता है, तो इससे तमिलनाडु के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ जाएगी। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 400 किलोमीटर दूर नामक्कल 2012 से चंद्रयान मिशन की क्षमताओं को जांचने के लिए इसरो को मिट्टी उपलब्ध करा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि यहां की मिट्टी चंद्रमा की सतह से मिलती जुलती है।
दक्षिणी ध्रुव से मिजली-जुलती है मिट्टी पेरियार विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के निदेशक प्रोफेसर एस अनबझगन ने बताया कि ‘नामक्कल में प्रचुर मात्रा में मिट्टी उपलब्ध थी, ऐसे में जरूरत पड़ने पर इसरो ने इसका इस्तेमाल किया। तमिलनाडु में इस प्रकार की मिट्टी है जैसी चंद्रमा की सतह पर है। यह मिट्टी खासतौर पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद मिट्टी से काफी मिजली-जुलती है। चंद्रमा की सतह पर मिट्टी एनॉर्थोसाइट है जो मिट्टी का एक प्रकार है।’तीसरी बार भेजी गई मिट्टीतमिलनाडु ने इसरो के महत्वाकांक्षी चंद्रमा मिशन में परीक्षण के लिए तीसरी बार मिट्टी की आपूर्ति की है।
प्रोफेसर एस अनबझगन ने बताया कि इसरो को कम से कम 50 टन मिट्टी भेजी गई है। अलग-अलग परीक्षणों से इसरो के वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की कि नामक्कल में मौजूद मिट्टी चंद्रमा की सतह पर मौजूद मिट्टी के जैसी ही है। यहां से इसरो को जरूरत के हिसाब से मिट्टी भेजी जाती है।